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V Subrahmanian v.subrahmanian at gmail.com
Sat Mar 28 03:42:34 EDT 2020


sribhrubhyo namah

I saw a story in Hindi:  एक दिन सहसा एक वृद्ध ब्रह्मण उपस्थित हुये और एक
सूत्र के अर्थ पर शंका कर बैठे. शंकराचार्य ने उत्तर दिया. पुनः शंका हुई,
शास्त्रार्थ प्रारम्भ हो गया और वह आठ दिनों तक चलता रहा. पद्यपादाचार्य जो
आचार्य शंकर के काशी में प्रथम शिष्य थे और जिनका पूर्व नाम सनन्दन था,
आश्चर्यचकित थे. मेरे गुरुजी जैसे अद्वितीय विद्वान से इतने दिनों तक
शास्त्रार्थ करते रहने की क्षमता किसमें है.

उन्होंने ध्यानसमाधि से देखा तो पता चला कि ये तो भगवान व्यास वृद्ध ब्राह्मण
के वेश में उपस्थित होकर शास्त्रार्थ कर रहे हैं. तत्क्षण उन्होंने हाथ जोड़कर
स्तुति की —

शंकरः शंकरः साक्षाद्

व्यासो नारायणः स्वयम्.

तयोर्विवादे सम्प्राप्ते न

जाने किं करोम्यहम्..

शंकराचार्य ने भगवान व्यास को पहचाना और उनके चरणों में गिर पड़े. अत्यंत
प्रसन्नता से श्री व्यास जी बोले —

तुम्हारी आयु केवल सोलह वर्ष की है, वह समाप्त होने पर आयी है. सोलह वर्ष मैं
तुम्हें अपनी ओर से देता हूं. धर्म की स्थापना करो.

आचार्य ने भगवान व्यास की आज्ञा का जीवन में अक्षरशः पालन किया. आचार्य जैसे
बालक को जन्म देकर हिन्दू जाति कृतकृत्य हुई.

   Is this from any Shankara Vijaya?  Kindly give details.

शंकरः शंकरः साक्षाद्

व्यासो नारायणः स्वयम्.

तयोर्विवादे सम्प्राप्ते न

जाने किं करोम्यहम्..        Thanks.


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