[Advaita-l] Idea of rebirth through the concept of adhyasa - an article in Hindi

V Subrahmanian v.subrahmanian at gmail.com
Wed Mar 13 23:51:46 EDT 2019


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अध्यास से जन्मान्तरवाद की सिद्धि ============

इस जन्म में कभी रसनेन्द्रिय से कड़वा रस का आस्वादन न किया हो, ऐसे बालक को भी
पित्तरोगग्रस्त होनेपर मीठा वस्तु कड़वा लगता हैं । तिक्तरस का यह अध्यास कड़वा
वस्तु का संस्कार से ही संभव हैं । संस्कार अनुभूत वस्तु का ही होता हैं,
अन्यथा सप्तम रस का भी संस्कार वर्तमान न होनेसे कड़वापन की जगह शिशु को किसी
सप्तम रस का अनुभव हो सकता था ।

पञ्चपादिकाकार के अनुसार तिक्तताका अवभास जन्मान्तरके अनुभूत तिक्तरसके
संस्कारसे होता है -

// अनास्वादिततिक्तरसस्य बालस्य मधुरे तिक्तताsवभासो
जन्मान्तरानुभवजन्यसंस्कारहेतुकः । //

~ पञ्चपादिका

नैष्कर्म्यसिद्धिकार का कहना है कि अनुकूलज्ञानसे ही प्रवृत्ति होता हैं,
अनुकूलज्ञानबिना प्रवृत्ति नहीं होती । फ़िर सद्योजात शिशु की स्तनपानमें प्रथम
प्रवृत्ति कैसे होता हैं ?

पूर्वजन्मों में स्तनपान में अनुकूलता का अनुभव किया हैं, जिसके संस्कार से
शिशु को स्तनपानमें अनुकूलता का स्मृति उत्पन्न होनेसे " स्तनपान मेरा अनुकूल
हो " ऐसा ज्ञान होता हैं । इसलिए स्तनपान में प्रवृत्ति होता हैं ।

इस प्रत्यभिज्ञा से एक ही जीवात्मा भिन्न-भिन्न देह को प्राप्त होता हैं यह
सिद्धान्त प्रमाणित होता हैं ।

प्रसंगतः उल्लेखनीय कि भामतीकार के अनुसार ' तिक्तो गुड़ः ' अध्यास की
प्रक्रिया पञ्चपादिका से कुछ भिन्न है -

जिह्वा शरीराभ्यन्तरवर्ती पित्तद्रव्य का ग्रहण करते समय दोषवशतः पित्तद्रव्य
का ग्रहण करने में असमर्थ होकर पित्त की तिक्ततामात्र को ग्रहण करती है ।
द्वितीयतः जिह्वा तत्संस्पृष्ट गुड़द्रव्यमात्र का ग्रहण तो करती है, किन्तु
दोषवशतः उसका मिष्टत्व का ग्रहण करने में समर्थ नहीं होती । इसके साथ ही
तिक्तता एवं गुड़द्रव्य में किसी प्रकार का तादात्म्यसम्बन्ध संभव न होनेपर भी
इस असम्बन्ध का ग्रहण नहीं होता अर्थात् असम्बन्ध का अग्रहण होता है ।
पूर्वानुभूत तिक्त निम्बपत्र के स्थल पर तिक्तत्व एवं निम्बपत्र में तादात्म्य
/ सम्बन्ध विद्यमान होनेसे अर्थात् असम्बन्ध अविद्यमान होनेसे असम्बन्ध का
अग्रहण हुआ था । उस संस्कारवशतः पित्तरोगी यहाँ भी दोषवशतः गुड़ एवं तिक्तता
में पूर्वानुभूत तादात्म्य का आरोप करते है एवं उसका अनुभव होता है - ' तिक्तो
गुड़ः ' । इस भ्रम में अधिष्ठानद्वय है तिक्तत्व एवं गुड़द्रव्य । उक्त
अधिष्ठानद्वयस्थ तादात्म्य / सम्बन्ध का अध्यास होता है । इसलिए गुड़ में
तिक्तत्वअध्यस्त होता है ऐसा कहना भामतीकार के अनुसार संगत नहीं ।

~ अध्यासभाष्य पर भामती द्रष्टव्य

कवितार्किकचक्रवर्ती नृसिंहभट्टोपाध्याय का मत भामतीकार से भिन्न प्रतिभात
होता है -

~ सिद्धान्तलेशसंग्रहः से प्रासंगिक पंक्तियाँ द्रष्टव्य


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